श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 47: वानरों द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण की रक्षा, सीता को पुष्पकविमान द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण का दर्शन कराना और सीता रुदन  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  6.47.20 
 
 
विध्वस्तकवचौ वीरौ विप्रविद्धशरासनौ।
सायकैश्छिन्नसर्वाङ्गौ शरस्तम्बमयौ क्षितौ॥ २०॥
 
 
अनुवाद
 
  दोनों वीरों के कवच टूट चुके थे, धनुष-बाण अलग-अलग बिखरे पड़े थे, तीरों से सारे अंग छिद गए थे और वे जैसे बाणों से बने हुए पुतले थे, वैसे ही धरती पर पड़े थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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