अथ वा रक्ष्यतां रामो यावत्संज्ञाविपर्यय:।
लब्धसंज्ञौ हि काकुत्स्थौ भयं नौ व्यपनेष्यत:॥ ३९॥
अनुवाद
अथवा जब तक श्रीरामचंद्र जी को होश न आ जाए, तब तक उनकी रक्षा की जानी चाहिए। जब उनकी चेतना वापस आ जाएगी, तो ये दोनों रघुवंशी वीर हमारे सारे भय को दूर कर देंगे।