श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 45: इन्द्रजित के बाणों से श्रीराम और लक्ष्मण का अचेत होना और वानरों का शोक करना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  6.45.26 
 
 
रामं कमलपत्राक्षं शरण्यं रणतोषिणम्।
शुशोच भ्रातरं दृष्ट्वा पतितं धरणीतले॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  सबको आश्रय देने वाले अपने भाई श्री राम को युद्ध में प्रसन्न होकर पृथ्वी पर लेटे हुए देख लक्ष्मण को गहरा शोक हुआ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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