श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 44: रात में वानरों और राक्षसों का घोर युद्ध, अङ्गद के द्वारा इन्द्रजित की पराजय, इन्द्रजित द्वारा श्रीराम और लक्ष्मण को बाँधना  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  6.44.17 
 
 
ततस्ते राक्षसास्तत्र तस्मिंस्तमसि दारुणे।
राममेवाभ्यवर्तन्त संहृष्टा: शरवृष्टिभि:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् उस घोर अंधकार के मध्य वे सभी राक्षस हर्ष और उत्साह में भरकर बाणों की वर्षा करते हुए स्वयं भगवान श्रीराम पर ही आक्रमण करने लगे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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