श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 43: द्वन्द्वयुद्ध में वानरों द्वारा राक्षसों की पराजय  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  6.43.35 
 
 
विद्युन्माली रथस्थस्तु शरै: काञ्चनभूषणै:।
सुषेणं ताडयामास ननाद च मुहुर्मुहु:॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  विद्युन्माली अपने रथ पर बैठा हुआ था। उसके बाण सोने के आभूषणों से सजे हुए थे। उसने उन बाणों से सुषेण पर बार-बार प्रहार किया। वह जोर-जोर से गर्जना करने लगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.