श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 41: श्रीराम का सुग्रीव को दुःसाहस से रोकना, लङ्का के चारों द्वारों पर वानरसैनिकों की नियक्ति, रामदत अङद का रावण के महल में पराक्रम तथा वानरों के आक्रमण से राक्षसों को भय  »  श्लोक 72
 
 
श्लोक  6.41.72 
 
 
ब्रवीमि त्वां हितं वाक्यं क्रियतामौर्ध्वदेहिकम्।
सुदृष्टा क्रियतां लङ्का जीवितं ते मयि स्थितम्॥ ७२॥
 
 
अनुवाद
 
  मैं तुम्हें हित की बात बताता हूँ। तुम अपना श्राद्ध कर डालो, परलोक में सुख देने वाले दान-पुण्य कर लो और लंका को जी भरकर देख लो, क्योंकि तुम्हारा जीवन मेरे अधीन हो चुका है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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