श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 41: श्रीराम का सुग्रीव को दुःसाहस से रोकना, लङ्का के चारों द्वारों पर वानरसैनिकों की नियक्ति, रामदत अङद का रावण के महल में पराक्रम तथा वानरों के आक्रमण से राक्षसों को भय  »  श्लोक 57
 
 
श्लोक  6.41.57 
 
 
रामलक्ष्मणगुप्ता सा सुग्रीवेण च वाहिनी।
बभूव दुर्धर्षतरा सर्वैरपि सुरासुरै:॥ ५७॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीराम, लक्ष्मण और सुग्रीव के संरक्षण में बंदरों की सेना बड़ी मजबूत हो गई थी। इस वजह से सभी देवता और असुर भी उस सेना से डरते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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