श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 41: श्रीराम का सुग्रीव को दुःसाहस से रोकना, लङ्का के चारों द्वारों पर वानरसैनिकों की नियक्ति, रामदत अङद का रावण के महल में पराक्रम तथा वानरों के आक्रमण से राक्षसों को भय  »  श्लोक 22
 
 
श्लोक  6.41.22 
 
 
क्षिप्रमद्य दुराधर्षां पुरीं रावणपालिताम्।
अभियाम जवेनैव सर्वतो हरिभिर्वृता:॥ २२॥
 
 
अनुवाद
 
  रावण के द्वारा पालित यह लङ्का पुरी शत्रुओं के लिए दुर्जय है, तथापि हमें शीघ्र ही वानरों के साथ मिलकर इस पर चारों ओर से वेगपूर्वक आक्रमण करना चाहिए।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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