श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 41: श्रीराम का सुग्रीव को दुःसाहस से रोकना, लङ्का के चारों द्वारों पर वानरसैनिकों की नियक्ति, रामदत अङद का रावण के महल में पराक्रम तथा वानरों के आक्रमण से राक्षसों को भय  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  6.41.13 
 
 
वाता हि परुषं वान्ति कम्पते च वसुंधरा।
पर्वताग्राणि वेपन्ते नदन्ति धरणीधरा:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रचंड आँधी चल रही है, जिससे पृथ्वी काँप रही है और पहाड़ों की चोटियाँ हिल रही हैं। दिग्गज चीत्कार कर रहे हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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