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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 14
श्लोक
6.40.14
परस्परं स्वेदविदिग्धगात्रौ
परस्परं शोणितरक्तदेहौ।
परस्परं श्लिष्टनिरुद्धचेष्टौ
परस्परं शाल्मलिकिंशुकाविव॥ १४॥
अनुवाद
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तब वे दोनों आपस में गुंथ गए। दोनों के शरीर पसीने से तर और खून से लथपथ हो गए तथा दोनों ही एक-दूसरे की पकड़ में आने के कारण निश्चेष्ट होकर खिले हुए सेमल और पलाश नामक वृक्षों के समान दिखाई देने लगे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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