श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 4: श्रीराम आदि के साथ वानर-सेना का प्रस्थान और समुद्र-तट पर उसका पड़ाव  »  श्लोक 104
 
 
श्लोक  6.4.104 
 
 
विरराज समीपस्थं सागरस्य च तद् बलम्।
मधुपाण्डुजल: श्रीमान् द्वितीय इव सागर:॥ १०४॥
 
 
अनुवाद
 
  समुद्र के निकट विशाल वानर-सेना का निवास था। वानरों के शरीर पर मधु के समान पिङ्गलवर्ण का पानी था, जिससे वे एक दूसरे चमकदार सागर जैसे लग रहे थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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