श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 35: माल्यवान् का रावण को श्रीराम से संधि करने के लिये समझाना  »  श्लोक 34-36
 
 
श्लोक  6.35.34-36 
 
 
एतान्यन्यानि दुष्टानि निमित्तान्युत्पतन्ति च॥ ३४॥
विष्णुं मन्यामहे रामं मानुषं रूपमास्थितम्।
नहि मानुषमात्रोऽसौ राघवो दृढविक्रम:॥ ३५॥
येन बद्ध: समुद्रे च सेतु: स परमाद्भुत:।
कुरुष्व नरराजेन संधिं रामेण रावण।
ज्ञात्वावधार्य कर्माणि क्रियतामायतिक्षमम्॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
 
  "इन और बहुत से अन्य अशुभ लक्षण दिखाई दे रहे हैं। मैं मानता हूं कि स्वयं भगवान विष्णु ने ही मानव रूप धारण करके राम बनकर अवतार लिया है। जिसने समुद्र में अत्यंत अद्भुत पुल बनाया है, वह बलशाली रघुवीर साधारण मनुष्य नहीं हो सकते। रावण! तुम्हें राजा श्रीराम के साथ संधि कर लेनी चाहिए। श्रीराम के अलौकिक कार्यों और लंका में हो रही विपत्तियों को जानकर, भविष्य में सुख देने वाले कार्य का निश्चय करके वही करो।"
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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