श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 33: सरमा का सीता को सान्त्वना देना, रावण की माया का भेद खोलना, श्रीराम के आगमन और उनके विजयी होने का विश्वास दिलाना  »  श्लोक 38
 
 
श्लोक  6.33.38 
 
 
गिरिवरमभितो विवर्तमानो
हय इव मण्डलमाशु य: करोति।
तमिह शरणमभ्युपैहि देवि
दिवसकरं प्रभवो ह्ययं प्रजानाम्॥ ३८॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी! जो गिरिवर मेरु के चारों ओर घूमते हुए घोड़े की तरह तेजी से मंडलाकार गति से चलते हैं, उन्हीं भगवान सूर्य की, जो तुम्हारे कुल के देवता हैं, तुम यहाँ शरण लो। क्योंकि वे प्रजा को सुख देने और उनके दुखों को दूर करने में समर्थ हैं।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे त्रयस्त्रिंश: सर्ग: ॥ ३ ३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें तैंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ ३॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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