देवी! जो गिरिवर मेरु के चारों ओर घूमते हुए घोड़े की तरह तेजी से मंडलाकार गति से चलते हैं, उन्हीं भगवान सूर्य की, जो तुम्हारे कुल के देवता हैं, तुम यहाँ शरण लो। क्योंकि वे प्रजा को सुख देने और उनके दुखों को दूर करने में समर्थ हैं।
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे त्रयस्त्रिंश: सर्ग: ॥ ३ ३॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें तैंतीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ ३॥