श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 33: सरमा का सीता को सान्त्वना देना, रावण की माया का भेद खोलना, श्रीराम के आगमन और उनके विजयी होने का विश्वास दिलाना  »  श्लोक 35
 
 
श्लोक  6.33.35 
 
 
तस्य दृष्ट्वा मुखं देवि पूर्णचन्द्रमिवोदितम्।
मोक्ष्यसे शोकजं वारि निर्मोकमिव पन्नगी॥ ३५॥
 
 
अनुवाद
 
  देवी! जैसे नागिन केंचुल छोड़ देती है और रूपांतरित हो जाती है, उसी प्रकार तुम इस दृष्टि को देखकर अपने शोक के आंसुओं को छोड़कर अपने पति के चेहरे की चमक को देखकर प्रसन्न हो जाओगी।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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