श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 32: श्रीराम के मारे जाने का विश्वास करके सीता का विलाप तथा रावण का सभा में जाकर मन्त्रियों के सलाह से युद्धविषयक उद्योग करना  »  श्लोक 44
 
 
श्लोक  6.32.44 
 
 
ततस्तथेति प्रतिगृह्य तद्वच-
स्तदैव दूता: सहसा महद् बलम्।
समानयंश्चैव समागतं च
न्यवेदयन् भर्तरि युद्धकाङ्क्षिणि॥ ४४॥
 
 
अनुवाद
 
  तब दूतों ने ‘ऐसा ही होगा’ कहकर रावण की आज्ञा स्वीकार की और तत्काल ही बड़ी सेना एकत्र कर ली; फिर युद्ध की इच्छा रखने वाले अपने स्वामी को बताया कि ‘सारी सेना आ गई है’।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे द्वात्रिंश: सर्ग: ॥ ३ २॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें बत्तीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ ३ २॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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