श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 27: वानरसेना के प्रधान यूथपतियों का परिचय  »  श्लोक 2-5h
 
 
श्लोक  6.27.2-5h 
 
 
स्निग्धा यस्य बहुव्यामा दीर्घलाङ्गूलमाश्रिता:।
ताम्रा: पीता: सिता: श्वेता: प्रकीर्णा घोरकर्मण:॥ २॥
प्रगृहीता: प्रकाशन्ते सूर्यस्येव मरीचय:।
पृथिव्यां चानुकृष्यन्ते हरो नामैष वानर:॥ ३॥
यं पृष्ठतोऽनुगच्छन्ति शतशोऽथ सहस्रश:।
वृक्षानुद्यम्य सहसा लङ्कारोहणतत्परा:॥ ४॥
यूथपा हरिराजस्य किंकरा: समुपस्थिता:।
 
 
अनुवाद
 
  यह हर नाम का वानर है। यह भयंकर कर्म करने वाला है। इसकी लंबी पूँछ पर लाल, पीले, भूरे और सफेद रंग के साढ़े चार हाथ बड़े-बड़े चिकने रोएँ हैं। ये इधर-उधर फैले हुए रोम उठे होने के कारण सूर्य की किरणों के समान चमक रहे हैं तथा चलते समय भूमि पर लोटते रहते हैं। इसके पीछे वानरराज के किंकररूप सैकड़ों और हजारों यूथपति उपस्थित हो वृक्ष उठाये सहसा लंका पर आक्रमण करने के लिये चले आ रहे हैं।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.