श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 26: सारण का रावण को पृथक-पृथक वानर यूथपतियों का परिचय देना  »  श्लोक 37-40
 
 
श्लोक  6.26.37-40 
 
 
यस्तु मेघ इवाकाशं महानावृत्य तिष्ठति।
मध्ये वानरवीराणां सुराणामिव वासव:॥ ३७॥
भेरीणामिव संनादो यस्यैष श्रूयते महान्।
घोष: शाखामृगेन्द्राणां संग्राममभिकाङ्क्षताम्॥ ३८॥
एष पर्वतमध्यास्ते पारियात्रमनुत्तमम्।
युद्धे दुष्प्रसहो नित्यं पनसो नाम यूथप:॥ ३९॥
एनं शतसहस्राणां शतार्धं पर्युपासते।
यूथपा यूथपश्रेष्ठं येषां यूथानि भागश:॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘जो महाकाय वानर मेघ के समान आकाश पर छाया हुआ खड़ा है, और वानर समूह में देवताओं में इन्द्र की तरह लगता है तथा युद्ध की इच्छा करने वाले वानरों के बीच जिसकी गर्जना ऐसी सुनाई देती है, मानो अनेकों भेरियों का तुमुल नाद हो रहा हो तथा जो युद्ध में सहन करना कठिन है, वह ‘पनस’ नामक यूथपति है। यह श्रेष्ठ पारियात्र पर्वत पर निवास करता है। सबसे श्रेष्ठ यूथपति पनस की सेवा में पचास लाख यूथपति रहते हैं, जिनके अपने स्वयं के यूथ अलग-अलग होते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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