श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 25: रावण का शुक और सारण को गुप्त रूप से वानरसेना में भेजना, श्रीराम का संदेश लेकर लङ्का में लौट रावण को समझाना  »  श्लोक 33
 
 
श्लोक  6.25.33 
 
 
प्रहृष्टयोधा ध्वजिनी महात्मनां
वनौकसां सम्प्रति योद्धुमिच्छताम्।
अलं विरोधेन शमो विधीयतां
प्रदीयतां दाशरथाय मैथिली॥ ३३॥
 
 
अनुवाद
 
  ‘महामनस्वी वानर इस समय युद्ध करने के लिए उत्सुक हैं। उनकी सेना में सभी वीर योद्धा बहुत प्रसन्न हैं। इसलिए उनके साथ युद्ध करने से आपको कोई लाभ नहीं होगा। इसलिए संधि कर लो और श्री रामचन्द्र जी की सेवा में सीता को लौटा दो’॥ ३३॥
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चविंश: सर्ग:॥ २५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें पचीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ २ ५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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