श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 22: नल के द्वारा सागर पर सौ योजन लंबे पुल का निर्माण तथा उसके द्वारा श्रीराम सहित वानरसेना का उस पार पड़ाव डालना  »  श्लोक 52
 
 
श्लोक  6.22.52 
 
 
औरसस्तस्य पुत्रोऽहं सदृशो विश्वकर्मणा।
स्मारितोऽस्म्यहमेतेन तत्त्वमाह महोदधि:।
न चाप्यहमनुक्तो व: प्रब्रूयामात्मनो गुणान्॥ ५२॥
 
 
अनुवाद
 
  इस प्रकार मैं विश्वकर्मा का वैध पुत्र हूं और शिल्पकर्म में उनके समान ही हूं। इस समुद्र ने आज मुझे इन सब बातों की याद दिला दी है। समुद्र ने जो कुछ कहा है, वह बिल्कुल सत्य है। मैं आपलोगों से बिना पूछे अपने गुणों के बारे में नहीं बता सकता था, इसीलिए अब तक चुप था।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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