श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 22: नल के द्वारा सागर पर सौ योजन लंबे पुल का निर्माण तथा उसके द्वारा श्रीराम सहित वानरसेना का उस पार पड़ाव डालना  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  6.22.26 
 
 
पृथिवी वायुराकाशमापो ज्योतिश्च राघव।
स्वभावे सौम्य तिष्ठन्ति शाश्वतं मार्गमाश्रिता:॥ २६॥
 
 
अनुवाद
 
  पृथ्वी, वायु, आकाश, जल और अग्नि - ये पांचों तत्व सदैव अपने स्वभाव में ही रहते हैं, वे कभी भी अपना सनातन मार्ग नहीं छोड़ते हैं, वे हमेशा अपने मार्ग पर ही चलते रहते हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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