श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 22: नल के द्वारा सागर पर सौ योजन लंबे पुल का निर्माण तथा उसके द्वारा श्रीराम सहित वानरसेना का उस पार पड़ाव डालना  »  श्लोक 23-25
 
 
श्लोक  6.22.23-25 
 
 
उद्वर्तितमहाग्राह: सम्भ्रान्तोरगराक्षस:॥ २३॥
देवतानां सुरूपाभिर्नानारूपाभिरीश्वर:।
सागर: समुपक्रम्य पूर्वमामन्त्र्य वीर्यवान्॥ २४॥
अब्रवीत् प्राञ्जलिर्वाक्यं राघवं शरपाणिनम्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  उनके अंदर बड़े-बड़े ग्राह आवाजें कर रहे थे, नाग और राक्षस घबराए हुए थे। देवताओं के समान सुंदर रूप धारण करके आयी हुई विभिन्न रूपवाली नदियों के साथ शक्तिशाली नदीपति समुद्र ने निकट आकर पहले धनुर्धर श्रीरामजी को संबोधित किया और फिर हाथ जोड़कर कहा-।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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