श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 21: श्रीराम का समुद्र के तट पर तीन दिनों तक धरना देने पर भी समुद्र के दर्शन न देने से बाण मारकर विक्षुब्ध कर देना  »  श्लोक 23-24
 
 
श्लोक  6.21.23-24 
 
 
अद्याक्षोभ्यमपि क्रुद्ध: क्षोभयिष्यामि सागरम्।
वेलासु कृतमर्यादं सहस्रोर्मिसमाकुलम्॥ २३॥
निर्मर्यादं करिष्यामि सायकैर्वरुणालयम्।
महार्णवं क्षोभयिष्ये महादानवसंकुलम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
 
  अद्यः अक्षोभ्य सागर को भी मैं क्रोधित होकर क्षुब्ध कर दूँगा। यह लाखों लहरों से भरा है फिर भी यह हमेशा अपने तट की मर्यादा में ही रहता है, लेकिन अपने बाणों से मैं इसकी मर्यादा नष्ट कर दूँगा। राक्षसों से भरे इस विशाल सागर में मैं हलचल मचा दूँगा और तूफान लाऊँगा।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.