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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 18: भगवान् श्रीराम का शरणागत की रक्षा का महत्त्व एवं अपना व्रत बताकरविभीषण से मिलना
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श्लोक 36
श्लोक
6.18.36
किमत्र चित्रं धर्मज्ञ लोकनाथशिखामणे।
यत् त्वमार्यं प्रभाषेथा: सत्त्ववान् सत्पथे स्थित:॥ ३६॥
अनुवाद
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धर्म के ज्ञाता और लोकनाथों में श्रेष्ठ! इस श्रेष्ठ धर्म की बात कहने में क्या आश्चर्य है? क्योंकि आप शक्तिशाली हैं और आप सन्मार्ग पर स्थित हैं।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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