श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 17: विभीषण का श्रीराम की शरण में आना और श्रीराम का अपने मन्त्रियों के साथ उन्हें आश्रय देने के विषय में विचार करना  »  श्लोक 59
 
 
श्लोक  6.17.59 
 
 
अज्ञातरूपै: पुरुषै: स राजन् पृच्छॺतामिति।
यदुक्तमत्र मे प्रेक्षा काचिदस्ति समीक्षिता॥ ५९॥
 
 
अनुवाद
 
  राजन! जिस मन्त्री ने यह कहा है कि उससे सारी बातें अपरिचित पुरुषों द्वारा पूछी जाएँ। उसके विषय में मैंने विचार किया है और यह निर्णय लिया है, जिसे आपके सामने रखता हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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