श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 17: विभीषण का श्रीराम की शरण में आना और श्रीराम का अपने मन्त्रियों के साथ उन्हें आश्रय देने के विषय में विचार करना  »  श्लोक 53
 
 
श्लोक  6.17.53 
 
 
अर्थानर्थनिमित्तं हि यदुक्तं सचिवैस्तव।
तत्र दोषं प्रपश्यामि क्रिया नह्युपपद्यते॥ ५३॥
 
 
अनुवाद
 
  सचिवों ने जो अर्थ और अनर्थ को देखकर गुण और दोषों की जाँच करने का सुझाव दिया है, उसमें मुझे दोष दिखाई देता है। क्योंकि इस समय ऐसी परीक्षा लेना कदापि संभव नहीं है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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