श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 17: विभीषण का श्रीराम की शरण में आना और श्रीराम का अपने मन्त्रियों के साथ उन्हें आश्रय देने के विषय में विचार करना  »  श्लोक 23
 
 
श्लोक  6.17.23 
 
 
अथ वा स्वयमेवैष छिद्रमासाद्य बुद्धिमान्।
अनुप्रविश्य विश्वस्ते कदाचित् प्रहरेदपि॥ २३॥
 
 
अनुवाद
 
  अथवा यह बुद्धिमान राक्षस छेद पाकर स्वयं ही विश्वासपात्र सेना के भीतर प्रवेश करके कभी भी हम पर अचानक वार कर सकता है, ऐसी भी संभावना है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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