श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 17: विभीषण का श्रीराम की शरण में आना और श्रीराम का अपने मन्त्रियों के साथ उन्हें आश्रय देने के विषय में विचार करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  6.17.14 
 
 
तमहं हेतुभिर्वाक्यैर्विविधैश्च न्यदर्शयम्।
साधु निर्यात्यतां सीता रामायेति पुन: पुन:॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  मैंने उसे बार-बार तमाम तरह के तीखे तर्कों और युक्तियों का सहारा लेकर समझाया कि श्रीरामचन्द्र जी को सीता जी को सम्मानपूर्वक वापस कर देना ही एकमात्र उचित और बुद्धिमानी वाला काम है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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