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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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श्लोक 87
श्लोक
6.128.87
ततो द्विविदमैन्दाभ्यां नीलाय च परंतप:।
सर्वान् कामगुणान् वीक्ष्य प्रददौ वसुधाधिप:॥ ८७॥
अनुवाद
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तत्पश्चात् शत्रुओं का नाश करने वाले राजा श्रीरघुनाथजी ने द्विविद, मैन्द और नील की ओर देखकर उन सबको उनकी मनोवांछित वस्तुओं और गुणों से युक्त सभी प्रकार के उत्तम रत्न आदि भेंट किये।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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