श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य  »  श्लोक 64-67
 
 
श्लोक  6.128.64-67 
 
 
ब्रह्मणा निर्मितं पूर्वं किरीटं रत्नशोभितम्।
अभिषिक्त: पुरा येन मनुस्तं दीप्ततेजसम्॥ ६४॥
तस्यान्ववाये राजान: क्रमाद् येनाभिषेचिता:।
सभायां हेमक्लृप्तायां शोभितायां महाधनै:॥ ६५॥
रत्नैर्नानाविधैश्चैव चित्रितायां सुशोभनै:।
नानारत्नमये पीठे कल्पयित्वा यथाविधि॥ ६६॥
किरीटेन तत: पश्चाद् वसिष्ठेन महात्मना।
ऋत्विग्भिर्भूषणैश्चैव समयोक्ष्यत राघव:॥ ६७॥
 
 
अनुवाद
 
  तदनंतर ब्रह्मा जी द्वारा निर्मित रत्नों से शोभायमान और दिव्य तेज से जगमगाते हुए उस किरीट को, जिसके द्वारा पहले मनु जी का और फिर क्रमशः उनके सभी वंशज राजाओं का अभिषेक हुआ था, विभिन्न प्रकार के रत्नों से चित्रित, स्वर्ण निर्मित और महान वैभव से सुशोभित सभा भवन में अनेक रत्नों से बनी चौकी पर विधि-विधान पूर्वक रखा गया। इसके बाद महात्मा वसिष्ठ जी ने अन्य ऋत्विज ब्राह्मणों के साथ उस किरीट और अन्य आभूषणों से श्रीरघुनाथ जी को विभूषित किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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