श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य  »  श्लोक 57-58
 
 
श्लोक  6.128.57-58 
 
 
ततस्तैर्वानरश्रेष्ठैरानीतं प्रेक्ष्य तज्जलम्॥ ५७॥
अभिषेकाय रामस्य शत्रुघ्न: सचिवै: सह।
पुरोहिताय श्रेष्ठाय सुहृद‍्भ्यश्च न्यवेदयत्॥ ५८॥
 
 
अनुवाद
 
  तब उन सर्वोत्तम वानरों द्वारा लाए गए उस जल को मंत्रियों सहित शत्रुघ्न ने देखकर श्रीराम जी के अभिषेक के लिए पुरोहित श्रेष्ठ वसिष्ठ जी और अन्य सुहृदों को समर्पित किया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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