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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य
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श्लोक 47
श्लोक
6.128.47
ततस्तैलप्रदीपांश्च पर्यङ्कास्तरणानि च।
गृहीत्वा विविशु: क्षिप्रं शत्रुघ्नेन प्रचोदिता:॥ ४७॥
अनुवाद
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तब शत्रुघ्नजी के आदेश से अनेक सेवकों ने तिल के तेल से जलने वाले बहुत-से दीपक, पलंग और बिछौने लेकर शीघ्र ही प्रवेश किया।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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