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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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काण्ड 6: युद्ध काण्ड
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सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य
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श्लोक 36
श्लोक
6.128.36
अमात्यैर्ब्राह्मणैश्चैव तथा प्रकृतिभिर्वृत:।
श्रिया विरुरुचे रामो नक्षत्रैरिव चन्द्रमा:॥ ३६॥
अनुवाद
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चन्द्रमा जिस प्रकार नक्षत्रों से घिरा सुशोभित दिखता है, उसी तरह मंत्रियों, ब्राह्मणों और प्रजा द्वारा घिरे श्रीराम जी की दिव्य कांति से जगमगा रहे थे।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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