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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य
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श्लोक 34
श्लोक
6.128.34
ददृशुस्ते समायान्तं राघवं सपुर:सरम्।
विराजमानं वपुषा रथेनातिरथं तदा॥ ३४॥
अनुवाद
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अयोध्या के निवासियों ने देखा कि अतिरथी श्री रघुनाथ जी रथ पर सवार होकर आ रहे हैं। उनकी दिव्य कांति से उनका श्रीविग्रह प्रकाशमान हो रहा था और उनके आगे-आगे अग्रगामी सैनिकों का जत्था चल रहा था।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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