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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य
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श्लोक 33
श्लोक
6.128.33
शङ्खशब्दप्रणादैश्च दुन्दुभीनां च नि:स्वनै:।
प्रययौ पुरुषव्याघ्रस्तां पुरीं हर्म्यमालिनीम्॥ ३३॥
अनुवाद
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पुरुषसिंह श्रीराम शंखों की ध्वनि और नगाड़ों के गंभीरनाद के साथ मीनारों और महलों से सजी अयोध्यापुरी की ओर चल पड़े।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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