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श्रीमद् वाल्मीकि रामायण
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सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य
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श्लोक 30
श्लोक
6.128.30
ऋषिसङ्घैस्तदाऽऽकाशे देवैश्च समरुद्गणै:।
स्तूयमानस्य रामस्य शुश्रुवे मधुरध्वनि:॥ ३०॥
अनुवाद
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तब आकाश में खड़े हुए ऋषियों ने, देवताओं ने और वायु के देवता मरुद्गणों सहित श्रीरामचन्द्रजी के मधुर-मधुर स्तवन की ध्वनि को सुना।
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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