श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  6.128.28 
 
 
जग्राह भरतो रश्मीन् शत्रुघ्नश्छत्रमाददे।
लक्ष्मणो व्यजनं तस्य मूर्ध्नि संवीजयंस्तदा॥ २८॥
 
 
अनुवाद
 
  तब भरत ने सारथी बनकर घोड़ों की लगाम अपने हाथों में थाम रखी थी। शत्रुघ्न ने छत्र धारण कर रखा था और लक्ष्मण उस समय भगवान श्रीराम के सिर पर चँवर हिला रहे थे।
 
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2024 vedamrit. All Rights Reserved.