श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  6.128.27 
 
 
हरियुक्तं सहस्राक्षो रथमिन्द्र इवानघ:।
प्रययौ रथमास्थाय रामो नगरमुत्तमम्॥ २७॥
 
 
अनुवाद
 
  जैसे सहस्र नेत्रों वाले इंद्र हरे रंग के घोड़ों से जुते रथ पर सवार होकर यात्रा करते हैं, उसी प्रकार निष्पाप भगवान श्रीराम उत्तम रथ पर सवार होकर अपने श्रेष्ठ नगर की ओर चले।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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