श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य  »  श्लोक 125
 
 
श्लोक  6.128.125 
 
 
आयुष्यमारोग्यकरं यशस्यं
सौभ्रातृकं बुद्धिकरं शुभं च।
श्रोतव्यमेतन्नियमेन सद्भि-
राख्यानमोजस्करमृद्धिकामै:॥ १२५॥
 
 
अनुवाद
 
  यह काव्य आपके जीवनकाल, स्वास्थ्य, यश और भाईचारे के प्यार को बढ़ाएगा। यह आपको सर्वोत्तम बुद्धि प्रदान करेगा और मंगलकारी है; इसलिए समृद्धि की इच्छा रखने वाले सज्जनों को इस उत्साहजनक इतिहास को नियमित रूप से सुनना चाहिए।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डेऽष्टाविंशत्यधिकशततम: सर्ग:॥ १२८॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिर्निमित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ अट्ठाईसवाँ सर्ग पूरा हुआ॥ १२८॥
॥ युद्धकाण्डं सम्पूर्णम् ॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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