श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 128: भरत का श्रीराम को राज्य लौटाना, श्रीराम की नगरयात्रा, राज्याभिषेक, वानरों की विदार्इ तथा ग्रन्थ का माहात्म्य  »  श्लोक 104
 
 
श्लोक  6.128.104 
 
 
ब्राह्मणा: क्षत्रिया वैश्या: शूद्रा लोभविवर्जिता:।
स्वकर्मसु प्रवर्तन्ते तुष्टा: स्वैरेव कर्मभि:॥ १०४॥
 
 
अनुवाद
 
  ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चारों वर्णों के लोग लोभ से रहित थे। वे अपने-अपने वर्णों के अनुसार निर्धारित कर्मों में संतुष्ट थे और उन्हीं कर्मों को करने में लगे रहते थे।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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