श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 127: अयोध्या में श्रीराम के स्वागत की तैयारी, भरत के साथ सबका श्रीराम की अगवानी के लिये नन्दिग्राम में पहुँचना, श्रीराम का आगमन, भरत आदि के साथ उनका मिलाप तथा पुष्पक विमान को कुबेर के पास भेजना  »  श्लोक 55-56
 
 
श्लोक  6.127.55-56 
 
 
एतत् ते सकलं राज्यं न्यासं निर्यातितं मया॥ ५५॥
अद्य जन्म कृतार्थं मे संवृत्तश्च मनोरथ:।
यत् त्वां पश्यामि राजानमयोध्यां पुनरागतम्॥ ५६॥
 
 
अनुवाद
 
  प्रभु! आज मैंने आपके श्रीचरणों में रखी आपकी यह सम्पूर्ण राजधानी लौटा दी। आज का मेरा जन्म सफल हो गया, मेरा हृदय का वांछित उद्देश्य पूरा हो गया, क्योंकि मैं आपको अयोध्या के राजा श्रीराम को फिर से अयोध्या में लौटते हुए देख रहा हूँ।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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