श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 127: अयोध्या में श्रीराम के स्वागत की तैयारी, भरत के साथ सबका श्रीराम की अगवानी के लिये नन्दिग्राम में पहुँचना, श्रीराम का आगमन, भरत आदि के साथ उनका मिलाप तथा पुष्पक विमान को कुबेर के पास भेजना  »  श्लोक 48
 
 
श्लोक  6.127.48 
 
 
विभीषणं च भरत: सान्त्ववाक्यमथाब्रवीत्।
दिष्टॺा त्वया सहायेन कृतं कर्म सुदुष्करम्॥ ४८॥
 
 
अनुवाद
 
  दिष्ट्या त्वया सहकारेण रघुनाथजीने अत्यंत कठिन कार्य पूरा किया। भरतजी ने विभीषण को आश्वस्त करते हुए सान्त्वना देते हुए कहा - हे राक्षसराज! यह बड़े सौभाग्य की बात है कि आपकी सहायता लेकर श्रीरघुनाथजी ने अत्यंत दुष्कर कार्य पूरा कर लिया।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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