श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 127: अयोध्या में श्रीराम के स्वागत की तैयारी, भरत के साथ सबका श्रीराम की अगवानी के लिये नन्दिग्राम में पहुँचना, श्रीराम का आगमन, भरत आदि के साथ उनका मिलाप तथा पुष्पक विमान को कुबेर के पास भेजना  »  श्लोक 47
 
 
श्लोक  6.127.47 
 
 
त्वमस्माकं चतुर्णां वै भ्राता सुग्रीव पञ्चम:।
सौहृदाज्जायते मित्रमपकारोऽरिलक्षणम्॥ ४७॥
 
 
अनुवाद
 
  सुग्रीव! तुम हम चारों के पाँचवें भाई हो; क्योंकि स्नेहपूर्वक उपकार करने से ही कोई भी मित्र होता है। और मित्र अपना भाई ही होता है। दूसरी ओर, अपकार करना शत्रु का लक्षण है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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