श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 127: अयोध्या में श्रीराम के स्वागत की तैयारी, भरत के साथ सबका श्रीराम की अगवानी के लिये नन्दिग्राम में पहुँचना, श्रीराम का आगमन, भरत आदि के साथ उनका मिलाप तथा पुष्पक विमान को कुबेर के पास भेजना  »  श्लोक 45
 
 
श्लोक  6.127.45 
 
 
ते कृत्वा मानुषं रूपं वानरा: कामरूपिण:।
कुशलं पर्यपृच्छंस्ते प्रहृष्टा भरतं तदा॥ ४५॥
 
 
अनुवाद
 
  उन्होंने इच्छा अनुसार वानर रूप धारण करके मानव का रूप बना लिया और वैसे ही रूप में भरतजी से मिले। इस पर वे सभी बहुत प्रसन्न हुए और उस समय भरतजी का हाल-चाल पूछा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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