श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 127: अयोध्या में श्रीराम के स्वागत की तैयारी, भरत के साथ सबका श्रीराम की अगवानी के लिये नन्दिग्राम में पहुँचना, श्रीराम का आगमन, भरत आदि के साथ उनका मिलाप तथा पुष्पक विमान को कुबेर के पास भेजना  »  श्लोक 30-31
 
 
श्लोक  6.127.30-31 
 
 
तदेतद् दृश्यते दूराद् विमानं चन्द्रसंनिभम्॥ ३०॥
विमानं पुष्पकं दिव्यं मनसा ब्रह्मनिर्मितम्।
रावणं बान्धवै: सार्धं हत्वा लब्धं महात्मना॥ ३१॥
 
 
अनुवाद
 
  देखिए, यह पुष्पक विमान है, जो दूर से चंद्रमा जैसा दिखाई देता है। इस दिव्य पुष्पक विमान को विश्वकर्मा ने अपने मन के संकल्प से ही बनाया था। महात्मा श्रीराम ने रावण को उसके बंधु-बांधवों के साथ मारकर इसे प्राप्त किया है।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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