श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 125: हनुमान्जी का निषादराज गुह तथा भरतजी को श्रीराम के आगमन की सूचना देना और प्रसन्न हुए भरत का उन्हें उपहार देने की घोषणा करना  »  श्लोक 46
 
 
श्लोक  6.125.46 
 
 
निशम्य रामागमनं नृपात्मज:
कपिप्रवीरस्य तदाद्भुतोपमम्।
प्रहर्षितो रामदिदृक्षयाभवत्
पुनश्च हर्षादिदमब्रवीद् वच:॥ ४६॥
 
 
अनुवाद
 
  श्रीरामचन्द्रजी के आगमन का आश्चर्यजनक समाचार कपि-वीर हनुमान् जी के मुख से सुनकर राजकुमार भरत श्रीराम के दर्शन की इच्छा से अत्यन्त हर्षित हुए और उस हर्षातिरेक से ही वे फिर इस प्रकार बोले।
 
 
इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये युद्धकाण्डे पञ्चविंशत्यधिकशततम: सर्ग: ॥ १ २५॥
इस प्रकार श्रीवाल्मीकिनिर्मित आर्षरामायण आदिकाव्यके युद्धकाण्डमें एक सौ पचीसवाँ सर्ग पूरा हुआ ॥ १ २५॥
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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