श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 125: हनुमान्जी का निषादराज गुह तथा भरतजी को श्रीराम के आगमन की सूचना देना और प्रसन्न हुए भरत का उन्हें उपहार देने की घोषणा करना  »  श्लोक 43
 
 
श्लोक  6.125.43 
 
 
देवो वा मानुषो वा त्वमनुक्रोशादिहागत:।
प्रियाख्यानस्य ते सौम्य ददामि ब्रुवत: प्रियम्॥ ४३॥
 
 
अनुवाद
 
  भाई! तुम कोई देवता हो या मनुष्य, जो मुझपर दया करके यहाँ पधारे हो? सौम्य! तुमने जो यह मनभावन संवाद सुनाया है, उसके बदले में मैं तुम्हें कौन-सी प्यारी वस्तु प्रदान करूँ? (मुझे तो कोई ऐसा अनमोल उपहार नहीं दिखायी देता, जो इस मनभावन संवाद के समान हो)।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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