श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 125: हनुमान्जी का निषादराज गुह तथा भरतजी को श्रीराम के आगमन की सूचना देना और प्रसन्न हुए भरत का उन्हें उपहार देने की घोषणा करना  »  श्लोक 41-42
 
 
श्लोक  6.125.41-42 
 
 
ततो मुहूर्तादुत्थाय प्रत्याश्वस्य च राघव:।
हनूमन्तमुवाचेदं भरत: प्रियवादिनम्॥ ४१॥
अशोकजै: प्रीतिमयै: कपिमालिङ्गॺ सम्भ्रमात्।
सिषेच भरत: श्रीमान् विपुलैरश्रुबिन्दुभि:॥ ४२॥
 
 
अनुवाद
 
  तत्पश्चात् कुछ देर बाद उन्हें होश आया और वे उठकर खड़े हो गए। उस समय रघुकुलभूषण श्रीमान भरत ने प्यारे हनुमान जी को बड़ी तेजी से पकड़कर दोनों भुजाओं में भर लिया और दुःख-संबंध से दूर परमानंद में पूर्ण अश्रुबिंदुओं से उन्हें नहलाने लगे। फिर इस प्रकार बोले -।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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