तत्पश्चात् कुछ देर बाद उन्हें होश आया और वे उठकर खड़े हो गए। उस समय रघुकुलभूषण श्रीमान भरत ने प्यारे हनुमान जी को बड़ी तेजी से पकड़कर दोनों भुजाओं में भर लिया और दुःख-संबंध से दूर परमानंद में पूर्ण अश्रुबिंदुओं से उन्हें नहलाने लगे। फिर इस प्रकार बोले -।