श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 125: हनुमान्जी का निषादराज गुह तथा भरतजी को श्रीराम के आगमन की सूचना देना और प्रसन्न हुए भरत का उन्हें उपहार देने की घोषणा करना  »  श्लोक 25
 
 
श्लोक  6.125.25 
 
 
एवमुक्त्वा महातेजा: सम्प्रहृष्टतनूरुह:।
उत्पपात महावेगाद् वेगवानविचारयन्॥ २५॥
 
 
अनुवाद
 
  गुह से इस प्रकार कहकर महातेजस्वी और वेगशाली हनुमान्जी बिना कोई सोच-विचार किये बड़े वेग से आगे को उड़ चले। उस समय उनके सारे अङ्गों में हर्षजनित रोमाञ्च हो आया था। वे उस समय बहुत प्रसन्न थे और उनके अंगों पर रोमांच आ गया था। वे सोच रहे थे कि अब मैं सीता जी को खोजने जा रहा हूँ और रावण का वध करूँगा।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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