श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 125: हनुमान्जी का निषादराज गुह तथा भरतजी को श्रीराम के आगमन की सूचना देना और प्रसन्न हुए भरत का उन्हें उपहार देने की घोषणा करना  »  श्लोक 14
 
 
श्लोक  6.125.14 
 
 
एतच्छ्रुत्वा यमाकारं भजते भरतस्तत:।
स च ते वेदितव्य: स्यात् सर्वं यच्चापि मां प्रति॥ १४॥
 
 
अनुवाद
 
  इस बात को सुनकर भरत के चेहरे पर जो भाव आते हैं, उन पर ध्यान दें और समझने का प्रयास करें। भरत से मेरे प्रति कैसा व्यवहार होता है और उनके कर्तव्य क्या हैं, यह भी जानने का प्रयास करें।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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