श्रीमद् वाल्मीकि रामायण  »  काण्ड 6: युद्ध काण्ड  »  सर्ग 118: मूर्तिमान् अग्निदेव का सीता को लेकर चिता से प्रकट होना और श्रीराम को समर्पित करके उनकी पवित्रता को प्रमाणित करना तथा श्रीराम का सीता को सहर्ष स्वीकार करना  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  6.118.15 
 
 
अनन्यहृदयां सीतां मच्चित्तपरिरक्षिणीम्।
अहमप्यवगच्छामि मैथिलीं जनकात्मजाम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
 
  हां, यह बात मैं भी जानता हूं कि मिथिलेश नन्दिनी जनककुमारी सीता का हृदय सदैव मुझमें ही लगा रहता है। वह कभी मुझसे अलग नहीं होतीं। वो हमेशा मेरा ही मन रखती हैं और मेरी इच्छा के अनुसार चलती हैं।
 
 
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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